कुछ लोगो का कहना है की मूल नीलावंती ग्रंथ पुराने भारतीय पुस्तकालय में उपलब्ध है। लेकिन हक़ीक़त में यह सरकार द्वारा बैन होने के कारण किसी भी पुस्तकालय में नहीं है। इसका ओरिजिनल वर्सन कहा पर है यह कोई नहीं जानता।

लेकिन आप चाहे तो इस किताब के कुछ मूल पन्ने पढ़ सकते है, जो हमारी वेबसाइट पर मिल जायेगे। यदि लाइब्रेरी से पढ़ना हो तो वहा नीलावंती की कहानी वाली बुक मिल जाएगी। जिसमे अलग अलग लेखक अनुसार कहानी देखने मिलती है।
मूल नीलावंती ग्रंथ अभी कहां है
यह किसी को भी नहीं पता की असली ग्रंथ किस स्थान पर है। केवल एक संत द्वारा इकट्ठे किये कुछ कागज मिल जाते है। जिसे आप चाहे तो PDF Format में पढ़ सकते है।
सवाल यह भी है की क्या इसे पढ़ना सुरक्षित है? तो बिलकुल, आप पढ़ सकते हो। इससे कोई नुकसान नहीं होने वाला, बस आपको इसके शब्द पढ़ने में कठिनाई हो सकती है। क्यों की मूल और पुरानी लिखावट होने के कारण समझना थोड़ा मुश्किल है।
आज भी नीलावंती ग्रंथ का अस्तित्व रहस्य है। जबकि कुछ लोग इसे एक वास्तविक ग्रंथ मानते हैं, तो दूसरे इसे काल्पनिक मानते हैं। पुस्तक के अस्तित्व के प्रमाण के रूप में कुछ लोग इसकी प्रतियां दिखाते हैं, लेकिन इन प्रतियों की वैधता पर भी सवाल उठते हैं।
नीलावंती ग्रंथ एक रहस्यमय ग्रंथ है जिसे कई कहानियां और किंवदंतियां प्रचलित हैं। यह भी विवाद है कि क्या यह ग्रंथ सचमुच है या नहीं। तो इसपर काफी विवाद देखने मिलता है। क्यों की हमारे पास स्पष्ट और ज्यादा सबूत नहीं है।
5 पुस्तकालय जहा नीलावंती जैसे ग्रंथ है
भारत ज्ञान और विद्या की विशिष्ट भूमि रहा है, और यहाँ प्राचीन पुस्तकालय इस बात का जीवंत प्रमाण हैं। इन पुस्तकालयों में हज़ारों साल पुराने ग्रंथ, दुर्लभ पांडुलिपियाँ और आधुनिक साहित्य का विशाल संग्रह मौजूद है। आइए, भारत की 5 सबसे प्राचीन और विशाल लाइब्रेरियों तथा उनके अनमोल पुस्तक संग्रह के बारे में जानते हैं।
(1) नालंदा विश्वविद्यालय पुस्तकालय, बिहार
नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी दुनिया की सबसे पुरानी और विशाल लाइब्रेरियों में से एक थी। इसकी स्थापना 5वीं शताब्दी में हुई थी। यहाँ “धर्मगंज” और “रत्नसागर” नामक दो प्रमुख पुस्तकालय थे, जिनमें लाखों पुस्तकें और हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहित थे।
बौद्ध धर्म, दर्शन, गणित, खगोल विज्ञान और चिकित्सा से जुड़ी हज़ारों पांडुलिपियाँ यहाँ रखी हुई थीं। दुर्भाग्य से, 12वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों ने इस पुस्तकालय को जला दिया, लेकिन इसके अवशेष आज भी भारत के गौरवशाली इतिहास की कहानी कहते हैं।
(2) तंजावुर सरस्वती महल लाइब्रेरी, तमिलनाडु
तंजावुर की सरस्वती महल लाइब्रेरी भारत की सबसे प्राचीन और समृद्ध लाइब्रेरियों में से एक है। इसकी स्थापना 16वीं शताब्दी में नायक राजाओं ने की थी, जिसे बाद में मराठा शासकों ने संवारा। यहाँ संस्कृत, तमिल, तेलुगु और मराठी भाषाओं की 60,000 से अधिक पांडुलिपियाँ संग्रहित हैं।
इनमें वेद, उपनिषद, संगीत, नृत्य, आयुर्वेद और ज्योतिष से जुड़े दुर्लभ ग्रंथ शामिल हैं। यह पुस्तकालय आज भी शोधार्थियों और इतिहासप्रेमियों के लिए ज्ञान का खजाना है।
(3) खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी, बिहार
पटना स्थित खुदा बख्श लाइब्रेरी की स्थापना 1891 में हुई थी, लेकिन इसका पुस्तक संग्रह सैकड़ों साल पुराना है। यहाँ अरबी, फारसी, उर्दू और संस्कृत की 21,000 से अधिक दुर्लभ पांडुलिपियाँ मौजूद हैं।
इनमें मुगलकालीन चित्रों वाली पांडुलिपियाँ, अकबरनामा, शाहनामा और प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अनमोल संग्रह है। यह लाइब्रेरी भारत सरकार द्वारा संरक्षित है और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
(4) नेशनल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया, पश्चिम बंगाल
कोलकाता की नेशनल लाइब्रेरी भारत की सबसे बड़ी लाइब्रेरी है, जिसकी स्थापना 1953 में हुई थी। यहाँ 2.5 मिलियन से अधिक पुस्तकें, पत्रिकाएँ और दस्तावेज़ संग्रहित हैं।
इसका इतिहास 1836 के कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी से जुड़ा है। यहाँ संस्कृत, हिंदी, अंग्रेज़ी और अन्य भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं की पुस्तकें भी उपलब्ध हैं। यह लाइब्रेरी शोधार्थियों, छात्रों और पुस्तकप्रेमियों के लिए एक विशाल ज्ञानकोश है।
(5) रामपुर रज़ा लाइब्रेरी, उत्तर प्रदेश
रामपुर रज़ा लाइब्रेरी की स्थापना 18वीं शताब्दी में नवाब फैजुल्ला खान ने की थी। यहाँ 17,000 से अधिक पांडुलिपियाँ, 60,000 पुस्तकें और ऐतिहासिक दस्तावेज़ संग्रहित हैं।
इसका संग्रह अरबी, फारसी, तुर्की और उर्दू भाषाओं में है, जिसमें इस्लामिक धर्मशास्त्र, सूफीवाद, कविता और विज्ञान से जुड़ी पुस्तकें शामिल हैं। यह लाइब्रेरी भारतीय-इस्लामिक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
नीलावंती ग्रंथ कौन पढ़ सकता है
इसे पढ़ने की कोई उम्र, विशेषता या सिमा नहीं है। बस पढ़ने के लिए आपको हिंदी भाषा का ज्ञान होना जरुरी है। साथ ही विशेष शब्दों को समझने के लिए थोड़ा बहुत संस्कृत का पता होना चाहिए।
इसके अलावा आप जो भी सुनते है वो सब अफ़वाए है। जैसे की इसे पढ़ने पर मृत्यु होती है या इंसान पागल हो जाता है। यह भ्रामक अफ़वाए अंग्रेजो की शहशन समय पर फैलना शुरू हुई थी। क्यों की तब अंग्रेज सरकार ने ग्रंथ पर प्रतिबंध लगा दिया था।
प्रतिबंध इस लिए लगाया गया था क्यों की लोग इसे पढ़ कर अंध विश्वास की तरफ ज्यादा जा रहे थे। ये ना बढे इसीलिए इसे रोका गया, लेकिन अब यह ग्रंथ पढ़ने के लिए मिल ही नहीं पता।
नीलावंती ग्रंथ को क्यों नष्ट किया गया
लोककथाओं के अनुसार, इसे पढ़ने वाला व्यक्ति अद्भुत क्षमताओं का धनी बन जाता, लेकिन साथ ही उसका मानसिक संतुलन भी बिगड़ सकता था। इसी कारण कई कहानियों में कहा जाता है कि यह ग्रंथ अत्यधिक खतरनाक था और इसे नष्ट कर दिया गया।
बहुत से लोगो का कहना है की कि सरकार या मंदिरों ने इसे छिपा दिया, जबकि असल में इसके कोई ठोस सबूत नहीं मिलते। ज़्यादा संभावना है कि यह या तो बस एक लोककथा थी या कोई पुरानी पांडुलिपि जो वक्त, मौसम और लापरवाही की वजह से खो गई।
कुछ लोग कहते है सरकार ने इसे जला दिया या नष्ट कर दिया है। जो भी हो पर जो असली और सटीक जानकारी है वो आप तक हमने पंहुचा दी है, धन्यवाद।
आशा करती हु नीलावंती ग्रंथ अभी कहा है और कौन पढ़ सकता है की पूरी जानकारी अच्छे से दे पायी हु। तो मिलने है अपनी नेक्स्ट पोस्ट में ऐसी ही दिलचस्प जानकारी के साथ तब तक के लिए टेक केयर।